जशपुर मुनादी।
जशपुर जिला जहां अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्द हैं, वहीँ अपनी जनजातियों को समेटे और उस पर उनकी संस्कृति का अपूर्व संगम इनके बसाहटों में देखने को मिलता है।
जिन प्रकृति पुत्रों ने अपनी अलग छठा के साथ जब अपने को रंगते हैं, इनके त्यौहार, रीती रिवाज और संस्कृति और उस पर उनकी वेष भूषा के बीच जब आप इनको नजदीक से देखते हैं, तब मन आपका भी स्वाभाविक रूप से इन सब के साथ रचने बसने को करने लगता है।
आने वाले समय में पूस की पूर्णिमा से शुरू होने वाला पर्व छेरछेरा या यहाँ की बोली में छेरता पर्व के रूप में मनाया जाता है। जहां किसान अपनी फसलों को अपने घर में कर चुका होता है, वहीँ जनजातीय समूह की टोलियां निकलती है घरों में, और घरों के सामने नाचा जाने वाला नृत्य के साथ घरों से दान के रूप में अनाज लिया जाता है, और टोलियां इन दान में इकठ्ठा किये गए अनाज को एक दिन वन भोज के रूप दिया जाता है, या कहें तो अपने आदिवासी संस्कृति परंपराओं अनुसार प्राप्त अनाज पकवान बनाकर गांव के साथ भोज किया जाता है।
ऐसी ही एक जनजातीय टोली जो बगीचा में ग्रामीण जनजातीय समुदाय के बीच अनाज दान हेतु नृत्य दल अपनी मनमोहक नृत्य संस्कृति डांड़ा नाच जिसे कुहू भी बोलचाल की भाषा में कहा जाता है। उसे मुनादी ने अपने कैमरे से देखा- जिसे आप भी देखिये और कहिये "ये तो जशपुर है!"